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भूपेंद्र ॥ नई दिल्ली
प्राइवेट स्कूलों में नर्सरी एडमिशन की रेस शुरू होने मेंकरीब महीने भर का वक्त बचा है। इस बार भी पैरंट्स केलिए सबसे बड़ा सवाल वह पॉइंट सिस्टम है , जिसकेआधार पर एडमिशन होता है। पिछले सेशन में ऐसे पैरंट्सकी कमी नहीं थी , जिन्होंने 20-20 स्कूलों में अप्लाई कियाथा लेकिन किसी स्कूल की लिस्ट में बच्चे का नाम नहीं था।सबसे बड़ा कारण स्कूल के पॉइंट सिस्टम में सिबलिंग वएलुमनी क्राइटेरिया को जरूरत से ज्यादा वेटेज दिया जानाथा। दिल्ली पैरंट्स काउंसिल के प्रतिनिधियों ने इस मसलेको उठाते हुए मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के साथ मुलाकातकी और पैरंट्स की समस्याओं के बारे में बताया। सबसेबड़ा सवाल यही था कि जो पैरंट्स सिबलिंग व एलुमनीकी कैटिगरी में नहीं आते , उनके बच्चों को भी एडमिशन मेंबराबरी का मौका मिलना चाहिए। काउंसिल ने मुख्यमंत्रीको सौंपे मांग पत्र में कहा है कि पॉइंट सिस्टम ऐसा हो , जिसमें जनरल कैटिगरी के लिए भी मौके हों।
सवाल नंबर 1 : सिबलिंग - एलुमनी फैक्टर
पिछले साल कई नामी स्कूलों ने सिबलिंग कैटिगरी ( स्कूल में पहले से पढ़ रहे भाई - बहन ) की वेटेज बहुत बढ़ादी थी। किसी स्कूल में तो सिबलिंग के लिए 100 में से 35 से 40 पॉइंट तय किए गए तो किसी स्कूल में केवल 10पॉइंट। इसी तरह से एलुमनी के भी पॉइंट रखे गए थे। एक स्कूल में तो सिबलिंग व एलुमनी दोनों कैटिगरी केकुल पॉइंट 60 हो गए थे , यानी इन दोनों कैटिगरी के पॉइंट पाने वालों का एडमिशन तय था। कोई पैरंट्स इनदोनों कैटिगरी में नहीं आता तो एडमिशन नहीं हो सकता। दिल्ली पैरंट्स काउंसिल के प्रेजिडेंट संजय शर्मा कीओर से मुख्यमंत्री को सौंपे गए मांग पत्र में कहा गया है कि इन दोनों कैटिगरी की वेटेज कम होनी चाहिए।एडमिशन फॉर्म्युले में केवल कुछ पैरंट्स को ही बहुत फायदा नहीं होना चाहिए। एडमिशंस नर्सरी डॉट कॉम केफाउंडर सुमित वोहरा का कहना है कि स्कूलों में एलुमनी के पॉइंट तो होने ही नहीं चाहिए। वह कहते हैं कि राइटटु एजुकेशन एक्ट में किसी भी तरह की स्क्रीनिंग पर रोक है और एलुमनी फैक्टर एक तरह से स्क्रीनिंग का हीहिस्सा है। वह कहते हैं कि सिबलिंग के पॉइंट होने चाहिए लेकिन लिमिट होनी चाहिए।
सवाल नंबर 2 : नेबरहुड
कुछ स्कूल नेबरहुड को ज्यादा पॉइंट देते हैं और कुछ बिल्कुल भी नहीं देते। एक्सपर्ट का मानना है कि पॉइंटसिस्टम में डिस्टेंस फैक्टर सबसे अहम होता है और इसकी वेटेज हर स्कूल में दी जानी चाहिए। स्कूलों में आमतौरपर 0-3 किमी की दूरी पर रहने वाले पैरंट्स को सबसे ज्यादा पॉइंट मिलते हैं। सुमित वोहरा का कहना है किस्कूलों में फ्री ट्रांसपोर्ट के पॉइंट भी होने चाहिए। यानी जो पैरंट्स अपने बच्चों को स्कूल से छोड़ने व ले जाने कीजिम्मेदारी लेने को तैयार हों , उनके लिए भी कुछ पॉइंट हों। ऐसे पैरंट्स की कमी नहीं है , जिनके एरिया में स्कूलनहीं होते और वे दूर - दूर के स्कूलों में अप्लाई करते हैं। ऐसे में उन पैरंट्स को नेबरहुड के पॉइंट नहीं मिल पाते।स्कूल वाले यह शर्त लगा सकते हैं कि पैरंट्स बच्चों के ट्रांसपोर्ट की जिम्मेदारी संभालें तो उन्हें भी पॉइंट दिएजाएं।
सवाल नंबर 3 : ईडब्ल्यूएस कैटिगरी
पैरंट्स काउंसिल का कहना है कि आर्थिक रुप से कमजोर ( ईडब्ल्यूएस ) वर्ग के लिए 25 प्रतिशत सीटें हर स्कूलमें रिजर्व होती हैं लेकिन इस कैटिगरी में आने वाले पैरंट्स को स्कूलों से फॉर्म मिलने में ही काफी परेशानी होतीहै। फॉर्म देते समय ही तमाम तरह की औपचारिकताएं पूरी करने को कहा जाता है , जिसके कारण पैरंट्स फॉर्मही नहीं ले पाते। काउंसिल का तर्क है कि किराये पर रहने वाले पैरंट्स से रजिस्ट्री की फोटोकॉपी तक मांगी जातीहै। ऐसे में पैरंट्स परेशान हो जाते हैं और स्कूल वाले तर्क देते हैं कि इस कैटिगरी में कम ऐप्लीकेशन आई हैं।सरकार से मांग की गई है कि ईडब्ल्यूएस कैटिगरी के लिए रजिस्ट्रेशन प्रोसेस सरल बनाया जाए।
कॉमन गाइडलाइंस के लिए मीटिंग इसी हफ्ते
प्राइवेट स्कूलों की एक्शन कमिटी ने सेशन 2011-12 के नर्सरी एडमिशन के लिए कॉमन गाइडलाइंस तैयार करनेके लिए 7 सदस्यों वाली एक कमिटी गठित की है। इस कमिटी की मीटिंग आने वाले हफ्ते में होनी है। एक्शनकमिटी के चेयरमैन एस . के . भट्टाचार्य का कहना है कि स्कूलों में नर्सरी एडमिशन के लिए जो क्राइटेरिया तैयारकिया जाता है , उनमें अलग - अलग कैटिगरी की वेटेज में बैलेंस होना चाहिए। जो कॉमन गाइडलाइंस तैयारहोंगी , उनके लागू होने के बाद विवादों से बचा जा सकेगा।
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in case if someone comes under both alumni and sibling, only one should get point.
but, we cannot force much to any of the school as per their decision... most of the pvt schools have their own policies above the standard one from the govt. that is they officially maintain all govt guidelines like ews etc , rest upto them .
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